प्रश्न: कंपनी से आप क्या समझते हैं ? कंपनी की विशेषताएं बताइए।
( What do you understand by Company? Describe the features of the Company.)
उत्तर: कंपनी (Company)- Company शब्द की उत्पति लेटिन भाषा के एक शब्द "Companies" से हुई थी। Companies शब्द की यदि हम बात करें तो यह दो शब्द Com और Panies से मिलकर बना हुआ है। इसमें प्रथम शब्द 'Com' का अर्थ 'साथ-साथ' तथा 'Panies' का अर्थ 'रोटी' से लगाया जाता है| इस तरह से यदि हम लेटिन भाषा के अनुसार Companies का अर्थ निकालेंगे तो इसका मूल अर्थ 'साथ साथ भोजन करने' से लगाया जा सकता है। कंपनी शब्द की उत्पति के शुरूआती दिनों की यदि हम बात करें तो कंपनी शब्द का उच्चारण व्यक्तियों के उस समूह के लिए किया जाता था, जो एक साथ बैठकर भोजन किया करते थे और उस वक्त भोजन करते समय समूह के लोगों के बीच व्यवसाय अर्थात बिज़नेस या काम-काज की भी बातें हुआ करती थी, वहीँ से इस Company नामक शब्द की उत्पति हुई थी। लेकिन वर्तमान में कंपनी का अर्थ एक ऐसे संगठन से लगाया जाता है जिसमे संयुक्त रूप से पूँजी विद्यमान होती है, अर्थात कुछ व्यक्तियों द्वारा संयुक्त रूप से पूंजी को समायोजित कर एक संगठन का निर्माण किया जाता है।
दूसरे शब्दों में, कम्पनी का आशय कम्पनी अधिनियम के अधीन निर्मित एक 'कृत्रिम व्यक्ति' से है, जिसका अपने सदस्यों से पृथक अस्तित्व एवं अविच्छिन्न उत्तराधिकार होता है। साधारणतः ऐसी कम्पनी का निर्माण किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए होता है और जिसकी एक सार्वमुद्रा (common seal) होती है।
(1) प्रोफेसर हैने के अनुसार, "कंपनी राजनियम द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है। यह एक पृथक वैधानिक अस्तित्व रखती है। इसे अविच्छिन्न उत्तराधिकार प्राप्त है और इसकी एक सार्वमुद्रा (Common seal) होती है।"
(2) किम्बाल एवं किम्बाल के अनुसार, "कंपनी स्वभाव से ही एक ऐसा कृत्रिम व्यक्ति है, जो किसी विशिष्ट उद्देश्यों के लिए राजनियम द्वारा अधिकृत या स्थापित किया जाता है।"
(3) भारतीय कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(20) के अनुसार, "कंपनी का अर्थ ऐसी कंपनी से है जिसका निगमन इस अधिनियम या किसी पूर्व कंपनी अधिनियम के अंतर्गत हुआ हो।"
ऊपर दी हुई कंपनी की विभिन्न परिभाषाओं का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि, "कंपनी एक वैधानिक व्यक्ति है जिसका निर्माण एवं पंजीयन कंपनी अधिनियम के अंतर्गत किसी विशेष उद्देश्य से होता है, जिसका दायित्व साधारणतया सीमित और अस्तित्व उसके सदस्यों से अलग होता है तथा इसकी एक सामान्य मुद्रा होती है।"
- कंपनी की विशेषताएं (Characteristics of a Company)- कम्पनी की कुछ आधारभूत विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति (An artificial person created by law) - कम्पनी विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम, अदृश्य, काल्पनिक एवं अमूर्त व्यक्ति है। कम्पनी को विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति इसलिए कहा जाता है कि एक ओर तो इसका जन्म अप्राकृतिक तरीके यानी कि विधान द्वारा होता है तथा दूसरी ओर प्राकृतिक व्यक्ति की तरह इसके अधिकार एवं दायित्व होते हैं। किसी व्यापार आदि कार्यों में जितने अधिकारों का प्रयोग वास्तविक व्यक्ति कर सकता है और जितने उत्तरदायित्व एक वास्तविक व्यक्ति के होते हैं, उतने ही कम्पनी के भी होते हैं।
(2) पृथक वैधानिक अस्तित्व (Separate legal entity)- कम्पनी की दूसरी विशेषता यह है कि इसका अपने सदस्यों से पृथक वैधानिक अस्तित्व होता है, जिसके कारण कंपनी अपने सदस्यों से अलग होती है। साझेदारी में साझेदारी फर्म एवं साझेदारों का अस्तित्व एक माना जाता है, परंतु कंपनी के संबंध में ऐसा नहीं होता है। इसका कारण यह है कि कम्पनी स्वयं विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति होने की वजह से कम्पनी द्वारा किये गये कार्यों के लिए कम्पनी स्वयं ही उत्तरदायी होती है और सदस्यों द्वारा किये गये कार्यों के लिए नहीं होती है। यदि कंपनी द्वारा कोई दावा किया जाए या कंपनी पर कोई दावा किया जाए तो इसे कंपनी के सदस्यों द्वारा या कंपनी के सदस्यों पर चलाया हुआ दावा नहीं समझा जाएगा।
(3) शाश्वत (अविच्छिन्न) उत्तराधिकार (Perpetual succession)- ”समामेलन की तिथि से ही कम्पनी शाश्वत उत्तराधिकार वाली हो जाती है।" कम्पनी के अंश हस्तान्तरणीय होने के कारण, चाहे उसके सभी सदस्य, अंशधारी, भले ही क्यों न बदल जायें, कम्पनी का अस्तित्व यथावत बना रहता है। कम्पनी के सदस्यों की मृत्यु, पागलपन अथवा अंश-हस्तान्तरण जैसी घटनाएँ भी कम्पनी के अस्तित्व एवं उसके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकती। अपितु उसका मूल अस्तित्व यथावत बना रहता है।
(4) सार्वमुद्रा (Common seal)- सार्वमुद्रा (common seal) मजबूत धातु पर इस प्रकार खुदी हुई मुद्रा है जिसमें कम्पनी का नाम लिखा होता है। कंपनी द्वारा निर्गमित किए हुए प्रपत्र व बिल, आदि पर इसे लगाया जाता है। जहां भी कम्पनी को हस्ताक्षर करने होते हैं, वहाँ कम्पनी के संचालक सार्वमुद्रा का प्रयोग करते हैं। सार्वमुद्रा प्रयोग किये बिना कम्पनी को किसी कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। अतः हर कम्पनी के पास अपनी एक सार्वमुद्रा का होना अनिवार्य है।
(5) लाभ के लिए ऐच्छिक पंजीकृत संघ (Registered voluntary association for profit)- कम्पनी व्यक्तियों का एक ऐच्छिक संघ है, जिसका मूल प्रयोजन लाभार्जन होता है। व्यक्ति स्वेच्छा से कम्पनी की सदस्यता स्वीकार करता है, किसी के दबाब में आकर नहीं। लाभ के लिए बनाये गये ऐसे ऐच्छिक संघ का पंजीयन भी आवश्यक होता है। पंजीयन कंपनी विधान के अधीन करवाया जाता है।
(6) लोकतांत्रिक प्रबन्ध (Democratic management)- कम्पनी स्वयं एक कृत्रिम व्यक्ति है, जो स्वयं अपना प्रबन्ध नहीं कर सकती है। ऐसी स्थिति में सामूहिक उद्देश्यों की प्राप्ति लोकतांत्रिक प्रबन्ध व्यवस्था द्वारा की जाती है। कम्पनी के सदस्य एवं अंशधारी स्वयं कम्पनी का प्रबंध नहीं कर सकते, क्योंकि वे बिखरे हुए होते हैं, उनके अंश क्रय का मुख्य प्रयोजन लाभांश अर्जित करना होता है, न कि कम्पनी को चलाना। इसे प्रतिनिधि प्रबंध के नाम से भी पुकारा जाता है।
(7) सीमित दायित्व (Limited liabilities)- व्यावसायिक स्वामित्व के विभिन्न प्रारूपों में कम्पनी के रूप में जो प्रारूप हैं, वहीं उसके सदस्यों का दायित्व अपने हिस्से (अंश) की सीमा तक सीमित हो सकता है। यदि किसी कम्पनी के सदस्यों ने अपने द्वारा किये गये अंशों की पूरी राशि कम्पनी को चुका दी है तो वे अतिरिक्त धनराशि के लिए बाध्य नहीं किये जा सकते, चाहे कम्पनी को अपने दायित्व चुकाने के लिए कितने ही धन की आवश्यकता क्यों ना हो।
(8) कार्यक्षेत्र की सीमाएँ (Limitation of working area)- प्रत्येक संयुक्त पूँजीवाली कम्पनी अपने कार्य में कम्पनी अधिनियम, अपने पार्षद सीमा-नियम तथा पार्षद अंतर्नियम से पूर्णतया बंधी हुई है। इनमें वर्णित व्यवस्थाओं के बाहर जाकर वह कोई भी कार्य नहीं कर सकती है।
(9) हस्तान्तरणीय अंश (Transferable shares)- किसी भी कम्पनी का कोई भी अंशधारी किसी अन्य व्यक्ति को एक स्वतंत्र अधिकार के रूप में अंशों का हस्तान्तरण कर सकता है और इस प्रकार वह स्वयं कम्पनी की सदस्यता से मुक्त हो सकता है।
(10) अभियोग चलाने का अधिकार (Right to prosecute)- कम्पनी अन्य पक्षकारों पर तथा अन्य पक्षकार कम्पनी पर वाद भी चला सकती है। इतना ही नहीं कम्पनी अपने सदस्यों पर तथा सदस्य अपनी कम्पनी पर भी वाद प्रस्तुत करने का अधिकार रखती है।
(11) सदस्य संख्या (Number of members)- सार्वजनिक कम्पनियों में कम से कम 7 सदस्य होना अनिवार्य है। इसमें अधिकतम सदस्यों की कोई सीमा नहीं होती है। जबकि निजी कम्पनी में कम से कम 2 तथा अधिकतम 200 व्यक्तियों तक सदस्य हो सकते हैं।
(12) कम्पनी का समापन (Winding up of a company)- कम्पनी का जन्म राजनियम के द्वारा होता है और जीवन पर्यन्त राजनियम के अनुरूप ही कार्य करती है। कम्पनी का समापन भी राजनियम के द्वारा ही होता है। अतः कहा जाता है कि किसी भी कम्पनी का समापन राजनियम के बिना नहीं हो सकता है।