Saturday, March 12, 2022

लो सखी, फिर आया मधुमास (Lo sakhi fir aaya madhumas)

"लो सखी, फिर आया मधुमास"

    

सरसो के पीले फूल खिले,

बागों में कलियां मुस्काई,

चलने लगी शीतल पुरवाई,

सूरज ने किरणे फैलाई,

गांव-गांव क्या शहर-शहर के,

जगा हृदय में नव उल्लास,

लो सखी, फिर आया मधुमास...

हां सखी, फिर आया मधुमास...


नए-नए कोंपल फूटे,

हर तरुवर पर यौवनता आया,

रंग-बिरंगे सुमन खिले,

चहुं ओर, हरियाली छाया,

वसुधा के कण-कण में जागा,

नव जीवन का नवल आश,

लो सखी, फिर आया मधुमास…

हां सखी, फिर आया मधुमास...


सर्द निशा का करके त्याग,

मन में लिए नया अनुराग,

है कूक रही कोयल काली,

चहक रही है डाली-डाली,

इस वसुधा के वन-वन में,

घोल रही है मधुर मिठास,

लो सखी, फिर आया मधुमास...

हां सखी, फिर आया मधुमास...

                   

मधुमासी लगे गुंजन करने,

दौड़े पुष्पों से, मधु चुराने,

रंग-बिरंगी उड़ती तितलियां,

डाल-डाल पर लगी मंडराने,

जैसे इस अरुणोदय का,

वर्षों से हो मन में आश,

लो सखी, फिर आया मधुमास...

हां सखी, फिर आया मधुमास...


खिल गई अतरंगी कलियां,

बगिया बेला-सी महक उठी,

धरा की अदभुत श्रृंगार देख,

मानो प्रकृति भी चहक उठी,

करने को ऋतुराज का स्वागत,

धरती ने पहना हरित लिबास,

लो सखी, फिर आया मधुमास...

हां सखी, फिर आया मधुमास...


©स्वरचित

R.Dheeraj Gupta

(5 February, 2022)